PANKHURI

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कुछ आखर-कुछ पन्ने

Monday, November 2, 2009

(5)

उसने चुपके से मुझे याद किया है शायद ... !
फिर मेरे जेहन की तन्हाई में ,
रूह का साज़ बज उठा है कहीं ,
उड़ती फिरती सी तितलियों की तरह ,
धड़कनें भी मेरे काबू में नहीं ,
उसने चुपके से मुझे याद किया है शायद ... !
फिर से कौंधी है कोई बिजली सी ,
फिर कोई लौ सी थरथराई है ,
फिर मेरी नज़रें चौंक उट्ठी हैं ,
जैसे आवाज़ कोई आई है ,
उसने चुपके से मेरा नाम लिया है शायद ... !


"प्रतिमा "