PANKHURI

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कुछ आखर-कुछ पन्ने

Wednesday, January 9, 2013

सूरज मेरे.........!!!!!!



दिखो या न दिखो....,
मुझे पता है कि तुम हो !
इस घने कोहरे के पार, अपारदर्शी धुंध के पीछे
मेरे मन की सारी अनिश्चितताओं.....शंकाओं.....
असमंजस और अन्यमनस्कताओं के परे,
शाश्वत....अडिग....निरंतर प्रज्ज्वल तुम हो वहीँ,
जहाँ रहते रहे हो अनंत काल से !

इधर मैं तुमसे दूर
अपने मन की शीत में घिरी...,
थरथराती....काँपती....
हिमांश सी जमती,
देख रही हूँ राह उस क्षण के आने की...,
जिस क्षण प्रकृति का एक चक्र पूरा होगा
और हम हमेशा की तरह मिलेंगे !

जिस क्षण तुम्हारे ताप से पिघल जायेगा
मेरी देह पर....,मन पर....,
रोम-रोम पर जमा हिम
सारा का सारा....,
स्वेद-कणों में बदल जायेगी ठिठुरन सारी...
तुम्हारे दीप्त आलोक में घुल जायेगा सारा कुहास.....,

और इस अमृत-प्रतीक्षा का क्षण-क्षण
जगा रहा है मुझमें
एक नवसौन्दर्यमय नवारम्भ की अदम्य आस...
क्योंकि
जब तक यह जीवन है,
तब तक
जन्म और मृत्यु की तरह
तुम्हारा होना और तुम्हारा आना भी
अटल.....शाश्वत सत्य है
सूरज मेरे.........!!!!!!


- प्रतिमा -


(Photo Courtesy : my friend Vinay Tripathii)