यहीं.........
इसी घर में....
कभी रहा करती थी वो लड़की
जिसके पास चाँद पर फेंकी जा सकने वाली कमंद झिलमिल तारों जड़ी
और चांदनी की रुपहली चुनर थी,
जिसे पहन कर वो अक्सर आधी रात गए
अपनी कमंद चाँद में अटका
वहाँ जा पहुँचती थी
और टहला करती थी
सपनों की मखमली सतह पर
अपना पसंदीदा गीत गुनगुनाते हुए
देर तक...,
हाँ उसके पास उसका पसंदीदा गीत भी था...
सात सतरंगी सुरों से गुंथा हुआ,
जिसके बोल
खुद उसने बासंती हवाओं से लिखवाए थे
और जिन बोलों में
उस खूबसूरत ख़्वाब की दास्ताँ थी
जिसका सच होना तय था...,
उस लड़की के पास उसकी अपनी उम्मीदों के
कई जोड़े पंख भी थे...
हाँ एक नहीं...कई जोड़े.....,
जब तेज़ हवाओं में उड़ते-उड़ते कोई एक उम्मीद थक जाती
तो वो
बिना रुके...बिना ठहरे
दूसरी उम्मीद के पंख लगा कर
निकल पड़ती थी अपने सफ़र पर...
लेकिन कभी रूकती नहीं थी
और हाँ...
उसके पास उसका एक अपना बहुत नाज़ुक,
मगर बेहद मज़बूत यकीन भी था
दरअसल वही उसकी असली ताकत था...
फिर जाने कब कैसे ये हुआ
उस लड़की का पता बदल गया शायद...,
वो अब तो यहाँ नहीं रहती
लेकिन कभी उसके यहाँ होने के निशान
अभी भी बाकी हैं...
हाँ यहीं इसी घर
जहाँ अब वो लड़की तो नहीं
लेकिन उसकी धागे-धागे बुनी कमंद,
एक जोड़ा उम्मीद,
उसके पसंदीदा गीत के कुछ बिखरे से बोल ,
आज भी पड़े हुए हैं...,
कमंद कुछ कमज़ोर हुई है
उम्मीद के पंखो पर कुछ धूल सी अटक गयी है
और गीत के बोल कुछ धुंधला गए हैं ज़रूर....
लेकिन ये सारी चीज़ें मौजूद हैं अब भी यहीं इसी घर में...
अपने होने की मज़बूत गवाही बन कर...,
बस एक ही चीज़ लापता है
वो यकीन...
जो उस लड़की की असली ताकत हुआ करता था...,
या तो वो उसके ही साथ गया,
या फिर यही कही पड़ा है
धूल-गर्द में छुपा,
अब जो भी हो,
इन सबको फिर से मुझे संभालना होगा
झाड़नी होगी सारी धूल,
सहेजना होगा बिखरी सारी चीज़ों को
और ढूँढना होगा उस खोये यकीन को भी,
अगर वो अब भी यहीं – कहीं है तो.......
क्योंकि ये ज़िम्मेदारी अब मुझ पर आ पड़ी है
क्योंकि जहाँ कभी रहती थी वो लड़की....
यहीं इसी घर में, अब मैं रहती हूँ......!!!
खूबसूरत बिंबों से सजी सुंदर अभिव्यक्ति
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