********************************
तेरे रेशमी एहसास से......., नए ख्व़ाब रोज़ बुना करूँ.
तेरी धड़कनों में गुँथी हुई, धुन ज़िन्दगी की सुना करूँ.
हर लफ़्ज़ जो तूने कहा..., मेरे दिल पे नक्श सा हो गया,
तेरे सिवा यहाँ कौन सा......., अफ़साना अब मैं बयाँ करूँ.
तू मिलेगा या खो जायेगा ,क्या होगा, कुछ भी पता नहीं,
मेरे हाथ में इतना है बस....., तुझे हर घड़ी... माँगा करूँ.
ये नमाज़-ए-इश्क कुबूल हो..., इस वास्ते.....ये ज़रुरी है,
मेरे सिर से तू सजदा करे......., तेरे हाथों से मैं दुआ करूँ.
जिन्हें चाहिये,उनको मिले, ये ज़मीन-ओ-आसमान-ओ-कायनात,
मेरे वास्ते बस एक तू....., तेरे बिन खुदा को भी क्या करूँ.
मेरी शाम है तेरी मुन्तज़िर, मेरी "सहर" है तेरी मुस्तहक़,
तेरे बिन सुलगती शमां हूँ मैं..., न जला करूँ, न बुझा करूँ.
- प्रतिमा " सहर "
तेरे रेशमी एहसास से......., नए ख्व़ाब रोज़ बुना करूँ.
तेरी धड़कनों में गुँथी हुई, धुन ज़िन्दगी की सुना करूँ.
हर लफ़्ज़ जो तूने कहा..., मेरे दिल पे नक्श सा हो गया,
तेरे सिवा यहाँ कौन सा......., अफ़साना अब मैं बयाँ करूँ.
तू मिलेगा या खो जायेगा ,क्या होगा, कुछ भी पता नहीं,
मेरे हाथ में इतना है बस....., तुझे हर घड़ी... माँगा करूँ.
ये नमाज़-ए-इश्क कुबूल हो..., इस वास्ते.....ये ज़रुरी है,
मेरे सिर से तू सजदा करे......., तेरे हाथों से मैं दुआ करूँ.
जिन्हें चाहिये,उनको मिले, ये ज़मीन-ओ-आसमान-ओ-कायनात,
मेरे वास्ते बस एक तू....., तेरे बिन खुदा को भी क्या करूँ.
मेरी शाम है तेरी मुन्तज़िर, मेरी "सहर" है तेरी मुस्तहक़,
तेरे बिन सुलगती शमां हूँ मैं..., न जला करूँ, न बुझा करूँ.
- प्रतिमा " सहर "
तेरे बिन सुलगती शमां हूँ मैं..., न जला करूँ, न बुझा करूँ. |
No comments:
Post a Comment