तुम मिल गए हो तो बस
समझ लूँ ...
आने वाली है सुबह,
होने वाले हैं उजाले,
मान लूँ....
मेरी हिस्से के सूरज ने भी
खोल दी हैं
अपनी आँखें,
पसार दी हैं
अपनी बाहें,
कर लिया है अपना रुख
मेरी बे-उजाला किस्मत की ओर...,
और इसी उम्मीद से
जी जाऊं एक बार फिर....
कि
उम्मीद की तासीर...
यकीन से ज़ियादा होती है...!!!
'' मैं '' प्रतिमा ....
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
वाह................
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
अनु
धन्यवाद अनु...अपनी एक दाद ने मुझे बड़ा हौसला दिया है...ये जुड़ाव बना रहे...
Deleteउम्मीद की तासीर...
ReplyDeleteयकीन से जियादा होती है...!!!
एकदम सच!!... उम्मीद से ही दुनिया कायम है... जब तक उम्मीद का दामन हाथों में है... कोई भी सपना कभी भी हकीकत की शक्ल अख्तियार कर सकता है...!!!
हाँ , इसी उम्मीद का दामन थामे ही तो हमने बड़े-बड़े सागर पार कर डाले हैं :-)
Deleteधन्यवाद् यशवंत जी , पहला मेरे ब्लॉग से जुड़ने और अपने बहुमूल्य कमेंट्स देने के लिए , दूसरा मुझे वर्ड वेरिफिकेशन की जटिलता से आगाह करने के लिए....सचमुच ये एक बाधा जैसा ही है...मैंने अब इसे अपने ब्लॉग से हटा दिया है.
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