PANKHURI

PANKHURI
कुछ आखर-कुछ पन्ने

Monday, November 2, 2009

(5)

उसने चुपके से मुझे याद किया है शायद ... !
फिर मेरे जेहन की तन्हाई में ,
रूह का साज़ बज उठा है कहीं ,
उड़ती फिरती सी तितलियों की तरह ,
धड़कनें भी मेरे काबू में नहीं ,
उसने चुपके से मुझे याद किया है शायद ... !
फिर से कौंधी है कोई बिजली सी ,
फिर कोई लौ सी थरथराई है ,
फिर मेरी नज़रें चौंक उट्ठी हैं ,
जैसे आवाज़ कोई आई है ,
उसने चुपके से मेरा नाम लिया है शायद ... !


"प्रतिमा "

Tuesday, October 13, 2009

(4)

कर लेती हूँ मैं
तुमसे ढेरों बातें ,
तमाम दूरियों के बावजूद ...!
तुम्हारे पास होने के लिए
मुझे नहीं महसूस होती ज़रूरत
तुम तक जाने की ... !
अलग रह कर भी तुम्हारा एहसास रहता है
हमेशा मेरे पास ...!
अपनी खुशियाँ,
आँसू ,
व्यस्तता ,
अकेलापन ,
और भी जाने कितना कहा -अनकहा ,
बाँट लेती हूँ तुमसे ,
इतनी दूर रह कर भी ... !
सच दोस्त ,
तुम मुझे कभी ख़ुद से जुदा महसूस ही नही होते ,
शायद
इसी का नाम दोस्ती है ... !

Monday, October 5, 2009

(3)

तुम्हें महसूस करना चाहती हूं ।
मैं अब हद से गुज़रना चाहती हूं ।
जो अच्छा या बुरा है ,पास मेरे ,
तुम्हारे नाम करना चाहती हूं ।
तुम्हारी रूह के गहरे अंधेरे -
उजालों में उतरना चाहती हूं ।
सितारे तुमने जो बिखरा दिए हैं ,
उन्हें पलकों में भरना चाहती हूं ।
दुखों की उम्र जी ली है बहुत , अब ,
खुशी की मौत मरना चाहती हूं ।

(इस ब्लाग की सभी रचनाएं लेखिका की मौलिक एवं निजी कृति है। कृपया इनका अन्य कहीं इस्तेमाल न करें।)

मैं 'प्रतिमा '

Friday, September 11, 2009

(2)

ये सहरा किस कदर, फैला हुआ है ।
समंदर का मुझे ,धोखा हुआ है ।
तू उसकी खिलती मुस्कानों पे मत जा ,
वो अन्दर से बहुत टूटा हुआ है ।
पटकती है लहर, सिर साहिलों पर ,
ये मंजर मेरा भी, देखा हुआ है ।
बनेगी बात कैसे अब हमारी ,
ये धागा , बेतरह उलझा हुआ है ।

''मैं '' प्रतिमा !!!!!!!!!

Monday, August 31, 2009

(1)

सदाए दिल को फिजाओं में बिखर जाने दो ।
उदास रात की तकदीर संवर जाने दो ।
ग़मों के बोझ को कब तक उठाये रखोगे ,
अब तो पत्थर को कलेजे से उतर जाने दो ।
फूल की तरह इनसे खुशबुएँ भी उठेगीं ,
पहले ज़ख्मों को ज़रा और निखर जाने दो ।
कैसे तुम रोकोगे , उड़ते हुए परिंदे को ,
मन की मर्ज़ी है , वो जाता है जिधर , जाने दो ।
''मैं'' प्रतिमा ...