PANKHURI

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कुछ आखर-कुछ पन्ने

Tuesday, October 13, 2009

(4)

कर लेती हूँ मैं
तुमसे ढेरों बातें ,
तमाम दूरियों के बावजूद ...!
तुम्हारे पास होने के लिए
मुझे नहीं महसूस होती ज़रूरत
तुम तक जाने की ... !
अलग रह कर भी तुम्हारा एहसास रहता है
हमेशा मेरे पास ...!
अपनी खुशियाँ,
आँसू ,
व्यस्तता ,
अकेलापन ,
और भी जाने कितना कहा -अनकहा ,
बाँट लेती हूँ तुमसे ,
इतनी दूर रह कर भी ... !
सच दोस्त ,
तुम मुझे कभी ख़ुद से जुदा महसूस ही नही होते ,
शायद
इसी का नाम दोस्ती है ... !

2 comments:

  1. आपकी आवाज़ अच्छी है ( मैने सुनी नही लेकिन आपने लिखा है ना ) तो आपको एक सलाह दूँ ? हर कविता को बार बार सस्वर पढ़िये .. और लय के अनुसार शब्द कम ज़्यादा कीजिये बिलकुल निर्ममता पूर्वक .. देखियेगा कविता बहुत अच्छी बन जाती है । -शरद कोकास,दुर्ग छ.ग.

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  2. sach kahaa aapne...
    isi ka naam hi dosti hai
    nazm bahut prabhaavshaali hai
    badhaaee

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