PANKHURI

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कुछ आखर-कुछ पन्ने

Saturday, March 30, 2013

ख़्वाब की हकीकत !!

बरसों पहले तुम बंद आँखों का ख़्वाब बन कर मिलते थे...
मैं नींद में पल-पल जीती थी उस ख़्वाब को
फिर आँखें खोल देती थी
कि पता था....
ख़्वाब कभी सच नहीं होते कभी.....,
हाँ....., शुक्र ज़रूर मनाती थी कि
कम से कम ख़्वाब में तो पा लेती हूँ तुम्हें !

अब बरसों बाद तुमसे जागते हुए मिली हूँ...
सामने हूँ तुम्हारे....
देख रही हूँ.....सुन रही हूँ तुम्हें....
अपने पास........बहुत पास......,
ये बात और कि
तुम अब भी एक ख़्वाब ही हो....
जागी आँखों का ख़्वाब ........,
और अब......
नींद टूट जाने का भी कोई रास्ता नहीं
कि मुद्दतों से जाग ही रही हूँ मैं...,

तो अब उलझी हूँ हर लम्हा
इस सवाल में...
कि इस जागते ख़्वाब के जादू से बाहर कैसे निकलूँ....?

कि निकलना तो होगा ही......!
कि ख़्वाब की हकीकत तो अब भी वही है......!!
कि ख़्वाब तो अब भी सच नहीं होते.......!!!

- प्रतिमा -

1 comment:

  1. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति.....

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