ये सहरा किस कदर, फैला हुआ है ।
समंदर का मुझे ,धोखा हुआ है ।
तू उसकी खिलती मुस्कानों पे मत जा ,
वो अन्दर से बहुत टूटा हुआ है ।
पटकती है लहर, सिर साहिलों पर ,
ये मंजर मेरा भी, देखा हुआ है ।
बनेगी बात कैसे अब हमारी ,
ये धागा , बेतरह उलझा हुआ है ।
''मैं '' प्रतिमा !!!!!!!!!
तू उसकी खिलती मुस्कानों पे मत जा ,
ReplyDeleteवो अन्दर से बहुत टूटा हुआ है ।
bahut hi umdaa aur meaari ghazal kahi hai aapne
har sher apne aap mein mukaamil kahaani bayaan kar rahaa hai....
badhaaee .
---MUFLIS---
तू उसकी खिलती मुस्कानों पे मत जा ,
ReplyDeleteवो अन्दर से बहुत टूटा हुआ है ।
बहुत सुन्दर बहुत गहराई तक उतरती पंक्तियाँ.
aatmkatha ?????
ReplyDeletenothing to say ..you made me speachless.
vijay