ये जो वंदनवार देख रहे हैं सब...
तुम्हारी ही प्रतीक्षा की वो घड़ियाँ हैं
जिन्हें चुनकर अशोकपत्र सा सजाया है मैंने....
कहा था न तुमने कि.....
आओगे !!
...और ये जो गेंदे की सिंदूरी लड़ियाँ
सजने जा रही हैं इस वंदनवार में...
तुमसे मिलने की अभिलाषाऔर उल्लास हैं ये....
कहलाया है न तुमने कि
आ रहे हो !!!
-" नारंगी रंगों के गेंदों के फूल जब 'वन्दनवार' का रूप लेते हैं, सजावट कैसी भी हो, वे सहज ही आनंद, हर्ष, उल्लास का सा वातावरण उत्पन्न कर देते हैं....इनसे आपकी कृति भी महक उठी है.....चरैवेति.....चरैवेति ....
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