जिसे छेड़ दिया है तुमने
ठंडी-जमी बर्फ़ समझ कर...
देख लेना
कहीं वो आग की जमी हुई झील तो नहीं...
कि आग भी अगर जम जाये तो
सर्द......ठंडी हो जाया करती है.
और उस सर्द सतह के नीचे बाकी रहती हैं
तपिश और लपटें...
उसे अगर छेड़ा जाये तो
बह निकलता है धधकता लावा...
और नेस्तनाबूद कर डालता है
बस्तियों की बस्तियां....
सोच लेना फिर से....
कि....
जमी हुई आग
जमी हुई बर्फ़ से ज़्यादा खतरनाक होती है.
ReplyDeleteकल 16/11/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
वाह....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
बेहतरीन रचना...
अनु
बेहतरीन रचना...
Deleteसोच लेना फिर से....
कि....
जमी हुई आग
जमी हुई बर्फ़ से ज़्यादा खतरनाक होती है.
सुंदर रचना |बहूत खूब |
ReplyDeleteஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ
ब्लॉग जगत में नया "दीप"
ஜ●▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬●ஜ