PANKHURI

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कुछ आखर-कुछ पन्ने

Wednesday, December 5, 2012

एक उम्मीद...,एक संदेसा...,एक कहानी लंबी सी....!!

वो बस मन की दहलीज के बाहर
पहला ही कदम रहा होगा...
ठहरा, थमा, रुका, सहमा,
झिझका, घबराया सा.
पार की थी मन की ड्योढ़ी,
इस उम्मीद के साथ...
कि बाहर निकलते ही मिलोगे तुम
पहले से प्रतीक्षारत...,
मगर हुआ कुछ यूँ
कि सब थे ...बस तुम न थे...,
मैं ड्योढ़ी लांघ चुकी थी और तुम्हारा पहुँचना अभी बाकी था.

मैंने सोचा कि...
तुम्हें देर करने की आदत ठहरी.....मगर आना तो है ही...
कुछ देर ठहर कर प्रतीक्षा कर लूँ
और यूँ ही बैठ गयी मैं
उसी ड्योढ़ी पर तुम्हारी राह देखती....
उधर आँख टिकाये....जिधर से आना था तुम्हें.

ये तो अब जाकर जाना मैंने
कि उस वक्त तुम उधर से गुज़रे ही नहीं...,
किस्मत ने हमारा रास्ता जो बदल दिया था.

मगर तब किसे क्या पता था...किस्मत का लेखा...
सो बैठी रही...
हर आहट पर तुम्हें सुनती रही,
हर चेहरे में तुम्हें ढूंढती रही,
हर नाम में तुम्हें पुकारती रही,
ऐसे ही वक्त बहता चला गया
और मुझे बहते-बीतते वक्त का एहसास तक न हुआ......
मैं बैठी ही रही........बैठी ही हूँ..........
उसी ड्योढ़ी पर आज तक.

और देखो तो ज़रा .....
उमर नाशुकरी...कमबख्त को ...
निकल गयी चुपचाप, मुझे उसी ठाँव बैठा छोड़...
आगे......आगे.....बहुत आगे.............
और अब जा कर उसका संदेसा आया है कि
उसे मिल गए हो तुम.........
उस पहली ड्योढ़ी से आगे....बहुत आगे...
एक नाम, आवाज़, चेहरे के साथ...मेरी प्रतीक्षा करते...
लेकिन अब जिस पड़ाव पर जा पहुंची है उमर...
वहाँ तुम्हें पहचान लेने में वर्जनाएं हैं...रुकावटें हैं.
उस पड़ाव पर तुम एक परछाई से नज़र आते हो
जिसका कोई बदन नहीं....पैरहन नहीं.

फिर भी उमर को यकीन है कि वो तुम ही हो
जिसे मन की ड्योढ़ी के बाहर बैठी जोह रही हूँ मैं
बरसों बरस पीछे.....आज भ

और इसी यकीन से उमर ने आवाज़ दी है मुझे......
बुला रही है आगे....बहुत आगे.....
अपने पास.....अपने बराबर.....

और मैंने भिजवाया है जवाबी संदेसा 
कि वो ही अब आरती उतार ले तुम्हारी,
सदियों की प्रतीक्षा के बाद
गलत जगह, गलत समय पर आने के उलहने के साथ....,
और मुझे बैठा रहने दे यहीं
अपनी अधूरी उम्मीदों के साथ.

अब एक संदेसा तुम्हारे नाम भी.....

" सुनो अगली बार आना
तो सही वक्त- सही जगह आना,
जहाँ मैं तुम्हारी ही प्रतीक्षा में.....
थी.....हूँ.....और रहूँगी.....
कि मुझे पुनर्जन्म में यकीन है
और इस बात में भी
कि इस जनम की अधूरी कहानियाँ
अक्सर अगले जनम में पूरी हो जाया करती हैं...." !!!

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